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1.निबन्ध 1:-
जनसंख्या की समस्या
विषय प्रवेश – जनसंख्या की समस्या सामान्य रूप से विश्व की समस्या है। प्रति तीन सेकण्ड में दो बच्चे जन्म लेते हैं। परन्तु भारत में यह समस्या विशेष रूप से विकट बन गई है। भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का सातवाँ देश है, परन्तु जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर है। यह केवल चीन से पीछे है। इस समय भारत की जनसंख्या 120 करोड़ से अधिक है। जनसंख्या वृद्धि की वर्तमान गति से अनुमान है कि सन् 2020 ई. तक भारत की जनसंख्या 120 करोड़ से कई गुना अधिक होगी।
जनसंख्या में वृद्धि के कारण –
जनसंख्या में वृद्धि के कई कारण हैं; यथा-
- विज्ञान की उन्नति के साथ चिकित्सा एवं स्वास्थ्य की सुविधाओं में उन्नति हुई है। फलतः जन्म लेने वाले शिशुओं की मृत्यु दर में कमी हुई है तथा औसत आयु में वृद्धि हुई है, यानी आजकल एक भारतवासी पहले की अपेक्षा अधिक समय तक जीवित रहता है।
- प्राचीन मान्यताओं के अनुसार बच्चे भगवान की देन हैं। अतएव परिवार नियोजन जैसे उपायों को सामान्यतः अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता।
- यह भी एक दृष्टिकोण है कि अधिक बच्चे होने से काम करने के लिए तथा परिवार की रक्षा करने के लिए अधिक हाथ उपलब्ध होते हैं। उत्पादन की वृद्धि में जनशक्ति के महत्व को कौन नकार सकता है ?
- जनसंख्या वृद्धि को रोकने में सबसे अधिक बाधक तत्त्व है – अशिक्षा। अशिक्षित लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं है कि छोटे परिवार के क्या फायदे हैं। दूसरा कारण है -अन्धविश्वास तथा रूढ़िवादिता । इसके अतिरिक्त भारतीय सन्तान को ईश्वरीय देन समझते हैं तथा सन्तान को भाग्य के साथ जोड़ देते हैं।
- जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए सरकार द्वारा किये जाने वाले उपायों के असफल होने का कारण ही यह है कि परिवार नियोजन अपनाने वाला वह वर्ग है, जिसके कम बच्चे होते हैं। जिनके अधिक बच्चे होते हैं, वे परिवार-नियोजन को अपनाते नहीं हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि भारत के लोग सामान्यतः परिवार-नियोजन सदृश उपचारों को अपनाने के प्रति विशेष उत्साह नहीं दिखाते हैं।
उपसंहार – हमारे देश के विकास में जनसंख्या की वृद्धि एक बहुत बड़ी बाधा है। यातायात, शिक्षा, रोज़गार आदि विविध क्षेत्रों में जनसंख्या की वृद्धि सिरदर्द बन गई है । इस समस्या से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है – देश का प्रत्येक नागरिक इस समस्या का हल करने में सहायक हो। हमें निम्न पंक्तियाँ जन-जन तक पहुँचानी चाहिए –
“सुखमय जीवन का यह सार
दो बच्चों का हो परिवार।”
निबन्ध :2
नारी तुम केवल श्रद्धा हो
विषय प्रवेश – भारत में नारी का स्थान पूजनीय है। इसलिए प्राचीन काल में यहाँ नारी के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति की भावना थी। पुरुष के जीवन में वह माता के रूप मे बहन के रूप मे तथा पत्नी के रूप में अपना योगदान देती है। नारी के बिना पुरुष का जीवन अधूरा माना जाता है। कहा गया है – “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः” अर्थात्, “जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ भगवान का निवास होता है।” वेद-उपनिषद काल से नारी ने शास्त्र, गणित, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा और कौशल को प्रमाणित किया है।
विषय विस्तार – अनादिकाल से भारत में बहनेवाली पवित्र नदियों को गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा जैसे स्त्रियों के नाम दिए गए हैं। कहीं-कहीं मातृप्रधान परिवार की स्वीकृति इस बात को प्रमाणित करती है कि सामाजिक क्षेत्र में भी नारी को मान-सम्मान प्राप्त हुआ है। लेकिन अज्ञान और रूढ़िग्रस्त अंधविश्वासों के कारण नारी का अनादर होने लगा। सुरक्षा के नाम पर उसकी स्वतंत्रता का हरण हुआ। उसे मात्र विलास की वस्तु माना जाने लगा। नारी की स्थिति में बहुत बदलाव आये हैं। आज की नारी स्वतंत्र रूप से आगे बढ़कर पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर शिक्षा, चिकित्सा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कला, साहित्य, संगीत और राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में गणनीय प्रगति कर रही है।
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद सरोजिनी नायडू ने प्रथम महिला राज्यपाल बनकर अपनी क्षमता का परिचय दिया। श्रीमती इंदिरा गाँधी ने प्रधानमंत्री बनकर भारत देश को प्रगति के पथ पर अग्रसित किया। अंतरिक्ष में प्रवेश करनेवाली प्रथम भारतीय महिला कल्पना चावला ने संसार को यह सिद्ध कर दिखाया है कि स्त्री अंतरिक्ष तक पहुँच सकती है। इसी प्रकार सुनिता विलियम्स ने भी अंतरिक्ष की यात्रा कर अपने साहस का परिचय दिया है। पी.टी. उषा, अश्विनी नाचप्पा, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, मेरी कोम, ज्वाला गुट्टा, पी.वी. सिंधु आदि ने खेल-कूद के क्षेत्र में संसार भर में भारत का नाम रोशन किया है।
निबन्ध: 3
पर्यटन का महत्व
पर्यटन का अर्थ है – घूमना। एक प्रांत या प्रदेश में देखने लायक स्थलों को घूम-घामकर देखना ही पर्यटन कहलाता है।
प्राचीन काल में काशी, प्रयाग, केदारनाथ, बदरीनाथ, श्रृंगेरी और कंची आदि पुण्य-क्षेत्रों की यात्रा करना पर्यटन का एक अंग था। पुण्य कमाने के लिए तथा ज्ञान पाने के लिए पर्यटन करना अनिवार्य था। लेकिन ऐतिहासिक, धार्मिक तथा देखनेलायक जगहों की यात्रा करना पर्यटन कहलाने लगा है।
पर्यटन अथवा देशाटन भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख अंश था। काशी, प्रयाग आदि पुण्य क्षेत्रों की यात्रा करने से ही पुण्य मिलता है। मैसूर, महाबलिपुरम्, बादामी आदि ऐतिहासिक प्रदेशों में जाने से भारतीय इतिहास और संस्कृति का परिचय होता है। इतना ही नहीं पर्यटन से हम में भावैक्य पैदा होता है। हम में एकता की भावना का अनुभव होता है। पर्यटन से स्वास्थ्य लाभ भी होता है। ये सभी पर्यटन के लाभ हैं।
आजकल पर्यटन राज्य और राष्ट्र का एक प्रमुख उद्योग बन गया है।
निबन्ध: 4
नागरिक के कर्तव्य
नगर में रहनेवाले हर एक व्यक्ति नागरिक कहलाता है। हर एक नागरिक का अपना कर्तव्य होता है। उसे शांति से जीने का जितना अधिकार होता है वैसे ही दूसरों को भी शांति से जीने के लिए छोड़ना भी उसका कर्तव्य होता है। सरकार नागरिकों के लिए जो कानून व्यवस्था जारी करती है उसका सही प्रयोजन लेना, देना नागरिक का कर्तव्य है और सभी की रक्षा, कानून की मर्यादा, अपना कर्तव्य, जन संपत्ति की रक्षा, कुटुंब का पालन, ये सब नागरिक के कर्तव्य हैं। सरकार को कानून की मर्यादा रखना और न्याय से जीना भी नागरिक के लिए ज़रूरी है। प्रत्येक नागरिक को अपने देश के प्रति, भाषा के प्रति, धर्म के प्रति गौरव, अभिमान, प्यार होना आवश्यक है ।
निबन्ध :5
बेरोज़गारी
हर एक व्यक्ति रोज काम करके कमाता है तो उसे रोजगार कहते हैं। अगर काम न हो तो उसे बेरोज़गारी कहते हैं ।
हमारे देश में बेरोज़गारी आज बढ़ रही है। इसके कारण तो अनेक हैं।
बढ़ती जनसंख्या से नौकरियों की संख्या सीमित रहती है। हमारे अनेक युवक-युवतियाँ बेरोज़गार बनते हैं । सभी को तो काम नहीं मिल सकता। काम न मिलने पर लोग बुरे काम में जुट जाते हैं। पैसा कमाने के लिए वो कुछ भी कर सकते हैं ।
और एक कारण है कंप्यूटर का आगमन । बहुत लोग आज मशीन संभालने लगे हैं तो बेरोज़गारी निश्चय ही बढ़ रही है।
और एक कारण है लोग गाँव जाना नहीं चाहते उन्हें खेती-बारी नहीं अच्छी लगती। शहर में सब लोग रहे तो बेरोज़गारी बढ़ेगी ही
बेरोज़गारी को मिटा नहीं सकते पर कम तो कर सकते हैं।
इसके लिए करना आवश्यक जनसंख्या है। का मशीनों नियन्त्रण का जितना चाहे उतना ही उपयोग करना चाहिए। और युवकों को चाहिए कि वे गाँव जाये और वहाँ खेती-बारी का काम भी करें ।
निबन्ध -6
महँगाई
भारत को आज अनेक समस्याएँ सता रही हैं। इनमें महँगाई भी एक है। महँगाई ऐसी भयंकर समस्या है कि यह भारत देश के करोड़ों लोगों को सता रही है।
हर व्यक्ति के लिए बहुत ज़रूरी चीजें तीन होती हैं -रोटी, कपड़ा और मकान। भारत में ऐसे दरिद्रनारायण करोड़ों की संख्या में है। इस मुसीबत का प्रमुख कारण – महँगाई है।
महँगाई के कई कारण हैं। बढ़ती आबादी, बेरोज़गारी, वर्षा का अभाव, अकाल, खेतीबारी का कम होते जाना। इन कारणों से महँगाई दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। महँगाई के कारण लोग गरीबी में तड़प-तड़प के मर जाते हैं। कुछ लोग चोर-डकैत बन जाते हैं ।
महँगाई को दूर करने के कुछ उपाय हैं। जनसंख्या को कम करना, खेतीबारी की तरक्की के उपाय सोचना, ग्रामों का उद्धार करना, नगर की आबादी पर नियंत्रण करना ।
इन उपायों से महँगाई को कुछ हद तक ही सही रोका जा सकता है।
निबन्ध -7
वन महोत्सव
प्रस्तावना : मनुष्य प्रकृति की गोद में पला बड़ा हुआ है। मानव जीवन वनों पर आश्रित है। वृक्ष जन्म से लेकर मरण तक साथ देते हैं।
वनों से प्राप्त होनेवाली विभिन्न वस्तुएँ : वह हमारी आर्थिक संपदा के स्रोत हैं । वनों से हमें कच्चा माल प्राप्त होता है, वनों से अधिक मात्रा में इमारती लकड़ी, वार्निश, रबड आदि मिलता है। विभिन्न जड़ी-बूटियों, सुगंधित पदार्थ बनाने के साधन और कागज का सामान सभी वनों से मिलते हैं।
वृक्षों का उपयोग : प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरण
का आधार वन ही है। वन वर्षा में सहायक होते हैं तथा वायु को शुद्ध करते हैं। वेदों में प्रकृति की आराधना की गई है। आज तक हमारे देश में आवला, नीम, केला, पीपल और तुलसी की पूजा की जाती है। पृथ्वी को हरा-भरा, सुंदर और आकर्षक बनाने में वृक्षों का बड़ा योगदान है।
वनों के नाश के कारण : सभ्यता के विकास के
साथ-साथ वनों की कटाई अधिक होती जा रही है। जनसंख्या की वृद्धि के कारण भी वनों का नाश होता जा रहा है। वृक्षों की उपयोगिता के बारे में वैज्ञानिकों के सुझाव लेकर, अधिक वृक्ष लगाये जा रहे हैं। उनके अनुसार भारत के कुल भू-भाग का एक तिहाई भाग वन होना चाहिए। सन् 1950 में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल ने एक वन नीति की घोषणा की। इसमें वर्तमान वनों की रक्षा और पर्वतीय प्रदेशों में वृक्षारोपण कराकर सरकार ने वनों की कटाई पर रोक लगा दी और प्रतिवर्ष वन महोत्सव मनाए जाने लगे। प्रति वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में वृक्षारोपण कार्यक्रम किया जाता है। श्री सुंदरलाल बहुगुणा के वृक्षारोपण के प्रयास और ‘चिपको आंदोलन’ काफी लोकप्रिय हैं।
वनमोहत्सव के कारण धीरे धीरे वृक्षों की संख्या और जंगी जानवरों की संख्या में वृद्धि होने लगी। ‘वन महोत्सव माह’ और ‘वन महोत्सव सप्ताह’ के नाम से पूरे देश में पौधों को लगाया जाता है।
वृक्षों को लगाने से वनों में बढ़ोत्तरी होती है। आज अनेक सामाजिक संस्थाएँ वृक्षारोपण के लिए कई कार्यक्रम कर रही हैं। वन-जागृति से यह आशा है कि हमारी धरती फिर से हरी-भरी हो जायेगी।